तुम्हें शौक़-ए-मंज़िल में चलना पड़ेगा
तुम्हें शौक़-ए-मंज़िल में चलना पड़ेगा
गिरे हो तो गिर कर सँभलना पड़ेगा
जहाँ में वफ़ा का चलन आम कर के
निज़ाम-ए-जफ़ा को बदलना पड़ेगा
गुहर-हा-ए-मक़्सूद गर चाहते हो
हवादिस के तूफ़ाँ में पलना पड़ेगा
बचानी है तूफ़ाँ से गर अपनी कश्ती
हवाओं के रुख़ को बदलना पड़ेगा
नहीं मय-कदे में कोई नज़्म बाक़ी
हमें अपना साक़ी बदलना पड़ेगा
न गर ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से चौंके तो तुम को
नदामत से हाथों को मलना पड़ेगा
जहालत तअ'स्सुब व फ़िरक़ा-परस्ती
ये दलदल है इस से निकलना पड़ेगा
थे हम रौनक़-ए-बज़्म ये क्या ख़बर थी
कभी शम्अ बन कर पिघलना पड़ेगा
जिन्हों ने सजाई थी ये तेरी महफ़िल
ग़ज़ब है उन्ही को निकलना पड़ेगा
न भड़काओ नफ़रत की ये आग हर-सू
नहीं तो तुम्हें इस में जलना पड़ेगा
अरे फूल की सेज पर सोने वालो
किसी रोज़ काँटों पे चलना पड़ेगा
तरक़्क़ी की ये शर्त-ए-अव्वल है 'तलअ'त'
तुम्हें वक़्त के साथ चलना पड़ेगा
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