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तुनुक-मिज़ाज है मलहूज़ यूँ अदब रखना

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

तुनुक-मिज़ाज है मलहूज़ यूँ अदब रखना

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

MORE BYशहज़ाद अंजुम बुरहानी

    तुनुक-मिज़ाज है मलहूज़ यूँ अदब रखना

    बहुत सँभल के तुम उस के लबों पे लब रखना

    नवा-ए-गिर्या-ओ-ज़ारी फ़ज़ा में बिखरी है

    ये शाम है तो कहाँ तक लिहाज़-ए-शब रखना

    अलग खड़ी रही हम से हमारी परछाईं

    हमारे काम आया हसब-नसब रखना

    सदा से बैर है अपने सख़ी को क्या कीजे

    बुरा भी लगता है होंटों को बे-तलब रखना

    बहकती रात के क़िस्से मचलते दिन के सवाल

    वो माँग लेगा किसी दिन हिसाब सब रखना

    फ़िरासतों से 'अदावत है होशियारों को

    सो पागलों की तरह से बना के छब रखना

    नशा शराब नहीं वो निगाह करती है

    वो फेर लेगा निगाहें गिलास तब रखना

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