तूफ़ाँ है अगर घर के दरपय यूँ बैठ न जाओ कुछ तो करो
तूफ़ाँ है अगर घर के दरपय यूँ बैठ न जाओ कुछ तो करो
खिड़की के शिकस्ता शीशे पर काग़ज़ ही लगाओ कुछ तो करो
इंसान के क़ब्ज़ा-ए-क़ुदरत में इक नुत्क़ नहीं है बहुत कुछ है
होंटों से न निकले बात अगर आँखों से सुनाओ कुछ तो करो
महरूम-ए-तमन्ना रहने का सन्नाटा खा जाएगा तुम्हें
मायूसी के सकते से बचो आँसू ही बहाओ कुछ तो करो
सुल्तान के क़स्र-ए-मरमर का दरवाज़ा-ए-आहन बंद सही
गर तोड़ नहीं सकते उस को ज़ंजीर हिलाओ कुछ तो करो
ऐ जलते हुए घर के लोगो शो'लों में घिरे क्या सोचते हो
जब आग बुझाना मुश्किल है बाहर निकल आओ कुछ तो करो
ये खेत जो चुप हैं बोलेंगे और अखवे आँखें खोलेंगे
बारिश न सही बिजली ही सही कुछ तो बरसाओ कुछ तो करो
- पुस्तक : غزل اس نے چھیڑی-6 (पृष्ठ 155)
- रचनाकार : فرحت احساس
- प्रकाशन : ریختہ بکس ،بی۔37،سیکٹر۔1،نوئیڈا،اترپردیش۔201301 (2019)
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