तूर बन कर जल गया या शौक़-ए-मूसा हो गया
तूर बन कर जल गया या शौक़-ए-मूसा हो गया
हाए वो दिल जो तिरे जल्वे का शैदा हो गया
यक-ब-यक ऐ इल्तिफ़ात-ए-यार ये क्या हो गया
दर्द पहले दिल में उट्ठा फिर तमन्ना हो गया
ख़ाक कर देना है हस्ती का कमाल-ए-ज़िंदगी
क़तरा दरिया है जो हम-आग़ोश-ए-दरिया हो गया
ना-तवानी सब्र की तल्क़ीन जब करने लगी
दर्द ही हमदर्द बन कर चारा-फ़रमा हो गया
रह गई दिल में जो हसरत राज़-ए-उल्फ़त बन गई
अश्क बस आँखों से टपका था कि दरिया हो गया
झूलती थी कल इसी गहवारे में मा'सूमियत
आज ये दिल महशरिस्तान-ए-तमन्ना हो गया
हर तमन्ना बन रही है इक जहान-ए-आरज़ू
कौन ये दिल में इलाही जल्वा-फ़रमा हो गया
क्यों मिरे कहने से वो पर्दे के बाहर आ गए
इश्क़ तो मजनूँ है लेकिन हुस्न को क्या हो गया
ता'ना-ए-अहबाब दुनिया की क़यास-आराइयाँ
इक तिरी ख़ातिर मुझे सब कुछ गवारा हो गया
अब कहाँ ले जाएँ अपनी इस तबीअत को 'मुनीर'
लो ख़याल-ए-इश्क़ भी अंदोह-अफ़ज़ा हो गया
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