उन के दर पर क़ियाम रखते हैं
उन के दर पर क़ियाम रखते हैं
एक ऊँचा मक़ाम रखते हैं
अनगिनत आरज़ूएँ हैं दिल में
शीशा रखते हैं जाम रखते हैं
हैं तजस्सुस तलब जो ज़ेर-ए-नज़र
जादा-ए-ना-तमाम रखते हैं
मदफ़नों की पुकार सुन सुन कर
अपनी हस्ती को थाम रखते हैं
शो'ला-सामानियों की ठंडक है
हम भी फूलों से काम रखते हैं
पलती है सुब्ह भी इन आँखों में
रात का एहतिराम रखते हैं
बाद-पाई पे नाज़ है हम को
और ज़बाँ पर लगाम रखते हैं
सीना उर्यां रम-आश्ना न सही
क़ैस अपना जो नाम रखते हैं
इक तसव्वुर में एक नज़रों में
सुब्ह रखते हैं शाम रखते हैं
कुछ तो जेब-ए-क़बा-ए-शब में हो
इक तलाश-ए-मुदाम रखते हैं
हम सज़ा-वार-ए-बख़्शिश आप हुए
मासियत पर दवाम रखते हैं
ज़िंदा अब भी हैं वस्ल हो 'नाज़िर'
इंतिज़ारों से काम रखते हैं
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