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उन की महफ़िल में चली है मिरे अफ़्कार की बात

तुफ़ैल दारा

उन की महफ़िल में चली है मिरे अफ़्कार की बात

तुफ़ैल दारा

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    उन की महफ़िल में चली है मिरे अफ़्कार की बात

    फ़िक्र ने मेरी सुझाई है मुझे दार की बात

    ज़र्दी-ए-आरिज़-ए-दिल आज भी बाक़ी है मिरी

    उम्र-भर करता रहा आरिज़-ए-गुलनार की बात

    फ़ासले ख़त्म हुए जादा बना कू-ए-अदम

    किस को समझाऊँ तिरी शोख़ी-ए-रफ़्तार की बात

    आदमी नज़्म-ए-ख़ुदाई से उलझ बैठा है

    अब यहाँ सज्दे की होती है ज़ुन्नार की बात

    अपनी आवाज़ से भी शाह लरज़ उठते हैं

    जब महल्लात में हो कूचा-ओ-बाज़ार की बात

    सारी दुनिया दर-ए-मक़्तल पे सिमट आई है

    आमद-ए-सैल है क्या हो दर-ओ-दीवार की बात

    इक तसलसुल के सिवा खेल में क्या रक्खा है

    बे-ख़बर करते हैं क्यों जीत की और हार की बात

    कर रहा हूँ मैं रग-ए-ज़ीस्त से फिर ख़ून कशीद

    आएगी उन के लबों पर अभी ईसार की बात

    जाने क्यों फ़िक्र मिरी शो'ला-फ़िशाँ होती है

    जब भी करता है कोई ख़ुसरवी दरबार की बात

    तुम अगर चाहो तो मैं नाग से डसवा लूँगा

    सामने मेरे करना किसी ज़रदार की बात

    याद आए मुझे वियतनाम से उठते शो'ले

    जब भी छेड़ी है ग़म-ए-दिल ने क़द-ए-यार की बात

    मोहतसिब नग़्मा-ए-पाज़ेब का पाबंद हुआ

    शहर के लब पे है ज़ंजीर की झंकार की बात

    मसर्रत का तसव्वुर है ग़म की तख़्ईल

    ज़िंदगी अपनी है जैसे कोई बेगार की बात

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