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उस पे हर नक़्श उभरता है गुज़रने वाला

रज़ा वसफ़ी

उस पे हर नक़्श उभरता है गुज़रने वाला

रज़ा वसफ़ी

MORE BYरज़ा वसफ़ी

    उस पे हर नक़्श उभरता है गुज़रने वाला

    सत्ह-ए-दरिया पे नहीं कोई ठहरने वाला

    अपनी पूँजी को किया मैं ने हवाले उस के

    था जो रस्ते में मिरी जेब कतरने वाला

    जिस तरफ़ देखिए छाए हैं ग़मों के बादल

    जाने किस ज़ख़्म का चेहरा है बिखरने वाला

    मेरी आँखों की पहुँच देख के डर जाता है

    रंग बे-नूर तसावीर में भरने वाला

    वो चुना करता है हर रात चमकते तारे

    मैं बुना करता हूँ हर ख़्वाब बिखरने वाला

    दिल के ज़ख़्मों को ज़बाँ देते हो क्यों फूलों की

    इतनी गहराई में है कौन उतरने वाला

    ताबिश-ए-मेहर से मुझ को डराना 'वसफ़ी'

    मैं तो हूँ अपनी ही बीनाई से डरने वाला

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