वक़्त की दूरी को आँखों में सिमटते देखा
वक़्त की दूरी को आँखों में सिमटते देखा
ग़म-ज़दा हाल को माज़ी से लिपटते देखा
ख़ान-क़ाहें तो अभी चुप हैं मगर मैं ने वहाँ
रस भरी बात में मीरास को बटते देखा
मैं ने इख़्लास की तौक़ीर में देखी जो कमी
दिल में रिश्तों की मोहब्बत को भी घटते देखा
कैसे मग़्लूब हो शमशीर ये सोचा मैं ने
दस्त-ए-क़ातिल से हर इक सर को जो कटते देखा
वज़्अ'-दारी से हुई जब भी ये दुनिया ख़ाली
अच्छे अच्छों को उसूलों से भी हटते देखा
उस के वा'दों पे भरोसा नहीं करना 'सालिम'
मैं ने अक्सर उसे बातों से पलटते देखा
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