वो अपने इश्क़ में कैसा कमाल रखता है
वो अपने इश्क़ में कैसा कमाल रखता है
कि बे-रुख़ी में भी मेरा ख़याल रखता है
जो आज मेरा नहीं है वो कल मिरा होगा
कि हर ज़माना उरूज-ओ-ज़वाल रखता है
अजब नहीं वो जहाँ-भर को बेवफ़ा समझे
नज़र में मेरी वफ़ा की मिसाल रखता है
कहाँ तलक कोई दस्त-ए-करम को ज़हमत दे
तमाम-शहर ही दस्त-ए-सवाल रखता है
मिरी उड़ान के आगे है किस क़दर बेबस
ये आसमाँ जो सितारों का जाल रखता है
तिरा ख़याल ही कुछ मेहरबान है वर्ना
जहाँ मैं कौन किसी का ख़याल रखता है
मुक़ाबिल-ए-सफ़-ए-आ'दा है इस तरह 'ख़ावर'
कि तेग़ रखता है वो और न ढाल रखता है
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