वो कहते हैं बा-आसानी न हसरत दिल से निकलेगी
वो कहते हैं बा-आसानी न हसरत दिल से निकलेगी
जो निकलेगी तो ऐ 'साबिर' बड़ी मुश्किल से निकलेगी
मोहब्बत आप की हरगिज़ न मेरे दिल से निकलेगी
क़यामत में भी ये लैला न इस महमिल से निकलेगी
चलो अच्छा है रहने दो यूँही अरमाँ भरा मुझ को
न तुम घर मेरे आओगे न हसरत दिल से निकलेगी
यहीं हम ख़ाक हो जाएँगे जल कर मिस्ल-ए-परवाना
हमारी लाश भी ज़ालिम न इस महफ़िल से निकलेगी
फ़क़ीरों की दुआ लो हुस्न की ख़ैरात दो बोसे
वही मक़्बूल होगी जो लब-ए-साइल से निकलेगी
न वक़्त-ए-नज़अ' भी आया अयादत को तू ऐ ज़ालिम
हमारी जाँ तो निकलेगी मगर मुश्किल से निकलेगी
रहें आवारा-ए-सहरा नहीं हम तुझ से दीवाने
हमारी लाश मजनूँ कूचा-ए-क़ातिल से निकलेगी
न कू-ए-यार से ऐ क़ैस तुझ को वापस आना था
तमन्ना ख़ाक तेरी सई-ए-ला-हासिल से निकलेगी
सरा-ए-दहर में हम इस लिए ठहरे हैं दम भर को
कि राह-ए-ख़ाना-ए-दिल-दार उसी महफ़िल से निकलेगी
हमें मुँह फेर कर तू ज़ब्ह करता है तो कर लेकिन
हमारी जान ऐ क़ातिल बड़ी मुश्किल से निकलेगी
नहीं इस तरह में कहना ग़ज़ल आसान ऐ 'साबिर'
गिरह जो पड़ गई रंजिश की वो मुश्किल से निकलेगी
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