वो रहे दुनिया में इक दिलकश नगीने की तरह
वो रहे दुनिया में इक दिलकश नगीने की तरह
हम रहे बाहर मकाँ से एक ज़ीने की तरह
दुश्मनी होती है अक्सर दोस्तों के दरमियाँ
ये भी इक रिश्ता है तूफ़ाँ और सफ़ीने की तरह
क्यों कहो उस आदमी को तुम ज़ईफ़-ओ-ना-तवाँ
ख़ून-ए-दिल जिस ने बहाया हो पसीने की तरह
क्या कशिश पाई है तेरे हुस्न-ए-आलम-सोज़ ने
तू नज़र आता है ज़ेवर में नगीने की तरह
जब कहीं आया है गुलशन में बहारों पर निखार
ख़ून जब हम ने बहाया है पसीने की तरह
कैफ़ियत शाम-ए-जुदाई की न पूछ ऐ हम-नशीं
एक पल बिरहन को लगता है महीने की तरह
क़ादिर-ए-मुतलक़ की हो 'लाग़र' अगर चश्म-ए-करम
तैरते देखे हैं पत्थर भी सफ़ीने की तरह
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