वो सुनते ही नहीं तो हुई दास्ताँ अबस
वो सुनते ही नहीं तो हुई दास्ताँ अबस
शिकवे अबस हमारे हमारा बयाँ अबस
लेते हैं बेकसों के दिल-ओ-दीन-ओ-जाँ अबस
तुरकान-ए-शोख़ लूटते हैं कारवाँ अबस
दुनिया में जब ख़ुदा ही बुतों को बना चुका
करता है और फ़िक्र-ए-सितम आसमाँ अबस
तस्वीर की तरह हैं तिरी बज़्म में ख़मोश
गोया हुई है ख़ल्क़ हमारी ज़बाँ अबस
दिल मुब्तला-ए-दर्द-ओ-अलम था गया गया
ली जान भी बुतों ने हुआ ये ज़ियाँ अबस
यूँ ही सितम-कशों से तग़ाफ़ुल अगर रहा
बे-सूद है उमीद-ए-वफ़ा इम्तिहाँ अबस
होनी है एक रोज़ ख़िज़ाँ इस बहार की
गुलशन में क्यों बनाए कोई आशियाँ अबस
उस के सिवा है हेच मुझे जुमला काएनात
वो ही न हो नज़र में तो कौन-ओ-मकाँ अबस
बाक़ी है दिल के जाने का सीने में एक दाग़
होता है बाद ज़ख़्म के जैसे निशाँ अबस
सोते हैं वो कनार-ए-अदू में तमाम रात
मिस्ल-ए-अज़ान-ए-सुब्ह यहाँ है फ़ुग़ाँ अबस
उस की वो गुफ़्तुगू वो तबस्सुम कहाँ नसीब
बुलबुल की है ज़बान तो गुल का दहाँ अबस
वो बाद-ए-मर्ग मेरी अयादत को आए हैं
ना-मेहरबाँ हुए भी अगर मेहरबाँ अबस
आज़ार-ए-ताज़ा ऐ सितम-ईजाद मुझ को दे
ख़ू हो के हो गया है ग़म-ए-जावेदाँ अबस
अंजाम-ए-शौक़-ए-वस्ल-ए-बुताँ जानता तो है
रहता है बे-क़रार मिरा राज़-दाँ अबस
ठोकर लगाएँ ये भी गिराँ नाज़ुकी से है
रखता हूँ उन की रह में सर-ए-ना-तवाँ अबस
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