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ये अहल-ए-हवस हर गाम पे अपनी शान बदलते रहते हैं

अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी

ये अहल-ए-हवस हर गाम पे अपनी शान बदलते रहते हैं

अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी

MORE BYअबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी

    ये अहल-ए-हवस हर गाम पे अपनी शान बदलते रहते हैं

    मौसम के मुताबिक़ 'इशरत का सामान बदलते रहते हैं

    इंसाफ़ की गर्दन पर ख़ंजर चलता है दौलत-मंदों का

    बे-दर्द ज़माने के तेवर हर आन बदलते रहते हैं

    मुख़्तार कहीं मजबूर कहीं ज़रदार कहीं नादार कहीं

    इस तरह किताब-ए-हस्ती के 'उन्वान बदलते रहते हैं

    दुनिया वालो झूट नहीं ये दुनिया है और दुनिया में

    चाँदी के चमकते सिक्कों पर ईमान बदलते रहते हैं

    जिस रोज़ से ख़ित्ता-ए-दुनिया पर इंसान की शाही क़ाएम है

    क़ानून बदलता रहता है फ़रमान बदलते रहते हैं

    अफ़सोस दर-ए-मुंसिफ़ से भी इंसाफ़ की भीक नहीं मिलती

    कहने के लिए हर रोज़ नए दरबान बदलते रहते हैं

    मूसा की ज़रूरत है या-रब फ़िर’औनों की इस बस्ती में

    खूँ-ख़्वार दरिंदों की सूरत इंसान बदलते रहते हैं

    आदम के सपूतों की अब तक रफ़्तार वही है दुनिया में

    हर गाम पे लेकिन चाल अपनी शैतान बदलते रहते हैं

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