ये बुरा दोस्त है हर एक को अच्छा न समझ
ये बुरा दोस्त है हर एक को अच्छा न समझ
आज बिन परखे तू अपनों को भी अपना न समझ
लोग अक्सर उसी अंदाज़ पे खाते हैं फ़रेब
मुस्कुराहट को मोहब्बत का इशारा न समझ
हम ने साहिल से भी उठते हुए तूफ़ाँ देखे
तू किनारे को भी महफ़ूज़ किनारा न समझ
मैं ने जो कुछ भी दिया है उसे लौटा न मुझे
फ़र्ज़ को फ़र्ज़ ही रहने दे उधारा न समझ
फ़र्ज़ इंसान का इंसान के काम आना है
ग़ैर के दर्द-ओ-अलम को भी पराया न समझ
क़द्र मैं हुस्न की करता हूँ मगर याद रहे
मेरे अख़्लाक़ को तू हुस्न का मारा न समझ
है अभी तो तिरा हमदर्द-ओ-बही-ख़्वाह 'शफ़क़'
ख़ुद को तू इतना भी मजबूर-ओ-अकेला न समझ
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