ये किस ने जल्वा दिखा के आँखों में कर लिया है मक़ाम अपना
ये किस ने जल्वा दिखा के आँखों में कर लिया है मक़ाम अपना
बिशन दयाल शाद देहलवी
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ये किस ने जल्वा दिखा के आँखों में कर लिया है मक़ाम अपना
ये किस को अपना बना के बरहम किया है दिल ने निज़ाम अपना
ये किस की बातों में आ के हम ने किया है बदनाम नाम अपना
कि आज तक आगही से आजिज़ है जज़्बा-ए-ना-तमाम अपना
अगर तमन्ना-ए-बे-ख़ुदी की ज़बाँ से सुन लें पयाम अपना
तो आरिज़-ए-हुस्न से उलट दें नक़ाब वो ला-कलाम अपना
निगाह-ए-साक़ी से कह रहा हूँ सज़ा तवज्जोह की सह रहा हूँ
शराब-ए-रहमत के दौर में भी करम से ख़ाली है जाम अपना
जहाँ में हैं ख़ुश-नसीब अक्सर है जिन पे लुत्फ़-ए-नज़र सरासर
अगर मुक़ाबिल हूँ क्या अजब है मुझे भी कर लें ग़ुलाम अपना
निशाना-ए-हुस्न हो रहा है फ़िराक़ में उम्र खो रहा है
नज़र से फ़ुर्सत मिले तो दिल भी करे कोई इंतिज़ाम अपना
है मंज़र-ए-बज़्म 'शाद' ओ राहत ब-क़ल्ब-ए-मसरूर ऐन ने'मत
मज़ाक़-ए-शेर-ओ-सुख़न है अहल-ए-अदब में है एहतिराम अपना
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