ये नुक्ता ज़ह्न में रखना किसी इल्ज़ाम से पहले
ये नुक्ता ज़ह्न में रखना किसी इल्ज़ाम से पहले
तुम्हारा नाम आएगा हमारे नाम से पहले
नज़र आ जाएँगे अहबाब भी मुश्किल तो पड़ने दो
नज़र आते हैं कब तारे सवाद-ए-शाम से पहले
अगर ऐ मोहतसिब कट्टर मुवह्हिद हम नहीं होते
ख़ुदा का नाम क्यों लेते बुतों के नाम से पहले
यक़ीनन हम उन्हें पहले से बढ़ कर याद आते हैं
जभी तो नाम भी लेते हैं अब दुश्नाम से पहले
अगर नज़्द-ए-ख़ुदा इश्क़-ए-बुताँ अच्छा नहीं होता
न करता इश्क़ को पैदा ख़ुदा इस्लाम से पहले
किसी बुलबुल से जुगनू अहद-ए-नौ का चल दिया कह कर
परिंदे लौट जाते हैं घरों को शाम से पहले
कहीं ऐसा न हो ख़ौफ़-ए-ख़ुदा दिल में समा जाए
जो करना हो वो कर लो बंदिश-ए-एहराम से पहले
बुतान-ए-ख़ुद-तराशीदा की पूजा हो भी सकती है
मगर फ़तवा तो ले लो मुफ़्ती-ए-इस्लाम से पहले
तहम्मुल ना-गुज़ीर-ए-इश्क़ और हम इतने बे-सबरे
फ़साना भी नहीं पढ़ते मगर अंजाम से पहले
कोई दिल तोड़ना हो या कोई मस्जिद गिराना हो
कहा करते हैं बिस्मिल्लाह हम हर काम से पहले
'शहाब' इस दौर में यूँ दोस्तों से ख़ौफ़ खाते हैं
डरा करते थे जैसे गर्दिश-ए-अय्याम से पहले
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