ये सोचा है कि मर जाएँ तुम्हारे वार से पहले
ये सोचा है कि मर जाएँ तुम्हारे वार से पहले
इफ़्तिख़ार शाहिद अबू साद
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ये सोचा है कि मर जाएँ तुम्हारे वार से पहले
तुम्हारी जीत हो जाए हमारी हार से पहले
किसी लम्हे तुम्हारा वार कारी हो भी सकता है
मगर ये सर ही जाएगा मिरी दस्तार से पहले
बता कितना गिरा सकता हूँ ख़ुद को तेरी ख़्वाहिश पर
मिरा मेआ'र भी तो है तिरे मेआ'र से पहले
नज़ारा-हा-ए-दिलकश से गुज़र जाता था बेगाना
मगर ऐ क़ामत-ए-ज़ेबा तिरे दीदार से पहले
सितारों की तरह चमके हमारे ख़ून के छींटे
कि हम ने सर कटाया है फ़राज़-ए-दार से पहले
तलातुम-ख़ेज़ मौजों से मुझे लड़ना तो आता है
मगर मैं डूब सकता हूँ कभी मंजधार से पहले
तिरा ही अक्स मेरी आँख के तिल में फ़रोज़ाँ है
तुझे मैं देख सकता हूँ तिरे दीदार से पहले
कहीं भी जुर्म से पहले सज़ा वाजिब नहीं होती
कोई काफ़िर नहीं होता मगर इंकार से पहले
नए इम्कान ढूँडेगी हमारी जुस्तुजू 'शाहिद'
हम अब के दर बनाएँगे मगर दीवार से पहले
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