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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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ये तकल्लुफ़ ये मुदारात समझ में आए

इबरत मछलीशहरी

ये तकल्लुफ़ ये मुदारात समझ में आए

इबरत मछलीशहरी

MORE BYइबरत मछलीशहरी

    ये तकल्लुफ़ ये मुदारात समझ में आए

    हो जुदाई तो मुलाक़ात समझ में आए

    रूह की प्यास फुवारों से कहीं बुझती है

    टूट के बरसे तो बरसात समझ में आए

    जागते लब मिरे और उस की झपकती आँखें

    नींद आए तो कहाँ बात समझ में आए

    ली थी मौहूम तहफ़्फ़ुज़ के घरौंदे में पनाह

    रेत जब बिखरी तो हालात समझ में आए

    उँगलियाँ जिस्म के सब ऐब-ओ-हुनर जानती हैं

    लम्स जागे तो इक इक बात समझ में आए

    सैकड़ों हाथ मिरे क़त्ल में ठहरे हैं शरीक

    एक दो हों तो कोई बात समझ में आए

    कभी उतरा ही नहीं उस के तकल्लुफ़ का लिबास

    हो बरहना तो मुलाक़ात समझ में आए

    कोई आसाँ नहीं जल जल के सहर कर लेना

    शम्अ बन जाओ तो फिर रात समझ में आए

    तुम किसी रेत के टीले पे खड़े हो 'इबरत'

    उठ्ठे तूफ़ाँ तो फिर औक़ात समझ में आए

    स्रोत :
    • पुस्तक : Aansuwon Ki Barat (पृष्ठ 116)
    • रचनाकार : Ibrat Machhali Shahri
    • प्रकाशन : News Town Publishers (2013)
    • संस्करण : 2013

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