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यूँ गर्दिश-ए-दौराँ में कुछ अहबाब मिले हैं

तलअत ज़हरा

यूँ गर्दिश-ए-दौराँ में कुछ अहबाब मिले हैं

तलअत ज़हरा

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    रोचक तथ्य

    (This ghazal was written for her friend Abida)

    यूँ गर्दिश-ए-दौराँ में कुछ अहबाब मिले हैं

    जैसे शब-ए-तारीक में महताब मिले हैं

    यादों के कई नक़्श हैं बिखरे हुए दिल में

    उन यादों के अम्बार से कुछ ख़्वाब मिले हैं

    पहने हुए रहती हूँ तिरी यादों के गहने

    इन गहनों में कुछ गौहर-ए-नायाब मिले हैं

    इस दिल का तिरी रूह से रिश्ता है कोई तो

    मुझ को तिरी आँखों में जो गिर्दाब मिले हैं

    रौशन हैं यहाँ तेरी जहाँ-दीदा निगाहें

    यूँ हम भी तिरी फ़िक्र से सैराब मिले हैं

    घबराना नहीं तू ने कभी रंज-ए-सफ़र से

    दिल तेरे लिए कितने ही बेताब मिले हैं

    है मेरी सखी आबिदा तेरी मेरे मौला

    जिस के लिए जन्नत के कई बाब खुले हैं

    'ज़हरा' ये फ़क़त उस की दुआओं का समर है

    कुछ लोग जो हम को सर-ए-मेहराब मिले हैं

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