ज़ुल्फ़-ए-दौराँ है कहाँ साया-फ़गन मेरे बा'द
रोचक तथ्य
(Tarahi Mushaira Bazm-e-Jivan)
ज़ुल्फ़-ए-दौराँ है कहाँ साया-फ़गन मेरे बा'द
मुंतज़िर देर से हैं दार-ओ-रसन मेरे बा'द
किस को दिल-बस्तगी-ए-ग़म का सलीक़ा सौंपूँ
सोचता हूँ कि न मर जाए ये फ़न मेरे बा'द
मैं ज़माने से उठा रस्म-ए-वफ़ा की सूरत
फिरना उभरी किसी माथे पे शिकन मेरे बा'द
मेरे दम तक तो ज़र-ए-गुल की भी क़ीमत न उठी
ख़ाक के मोल गई अर्ज़-ए-चमन मेरे बा'द
होश-मंदी की सज़ा दे न किसी को यारब
दम-ब-ख़ुद पहले से हैं अहल-ए-वतन मेरे बा'द
बज़्म-ए-हस्ती है कि इक बोलता सन्नाटा है
आ गई वक़्त की साँसों में घुटन मेरे बा'द
रौशनी-साज़-ज़माना हूँ तो ये आलम है
देखिए क्या हो ज़माने का चलन मेरे बा'द
मिल ही जाएगा कोई ज़र्फ़-ओ-नज़र का मारा
दिल-शिकस्ता न रहें रंज-ओ-मेहन मेरे बा'द
वक़्त ने ज़ेहनियतें कितनी बदल डाली हैं
बिजलियाँ तक हैं हवा-ख़्वाह-ए-चमन मेरे बा'द
मुझ पे हँसता है ज़माना तो कोई बात नहीं
रंग लाएगी मिरे दिल की जलन मेरे बा'द
मौत बर-हक़ है मगर 'शौक़' ये मंज़ूर नहीं
उन के चेहरे पे हो सदमे की थकन मेरे बा'द
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