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छा रही है दुनिया पर आगही की तनवीरें

आज़ाद बहावलपुरी

छा रही है दुनिया पर आगही की तनवीरें

आज़ाद बहावलपुरी

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    छा रही हैं दुनिया पर आगही की तनवीरें

    हँस रही हैं तदबीरें रो रही हैं तक़दीरें

    आलसी विचारों के अपने पँख होते हैं

    उन को छू नहीं सकतीं सरहदों की ज़ंजीरें

    जोहद-ए-हक़ की मंज़िल में मुत्तहिद मिलीं अक्सर

    क़ातिलों की शमशीरें मुंसिफ़ों की तहरीरें

    लूट के तमद्दुन में जुर्म जन्म लेते हैं

    रोग हैं मईशत के क्या करेंगी ताज़ीरें

    आओ वक़्त मौज़ूँ है अब उसे बदलने का

    हो रही हैं सदियों से जिस जहाँ की तफ़्सीरें

    स्रोत :
    • पुस्तक : Hindustani Gazle.n

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