मैं बिखर कर भी बिखरता ही नहीं
मैं बिखर कर भी बिखरता ही नहीं
मुझ में वो क्या है जो मरता ही नहीं
अपना आशिक़ हूँ अज़ल से यारो
मैं किसी और पे मरता ही नहीं
मैं धुआँ हूँ मिरी मंज़िल है गगन
मैं ज़मीं पर तो ठहरता ही नहीं
चूम ले अर्श को इक बार कोई
फ़र्श पर फिर वो उतरता ही नहीं
मैं हूँ जल-पथ का मुसाफ़िर 'अल्हड़'
राज-पथ से मैं गुज़रता ही नहीं
- पुस्तक : Ghazals Dushyant Ke Baad (पृष्ठ 75)
- रचनाकार : Dixit Dankauri
- प्रकाशन : Vani Prakashan (2003)
- संस्करण : 2003
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