अमरीका शेर पढ़ने गए थे हमारे दोस्त
रोचक तथ्य
The refrain of this Ghazal was decided for the annual Mushaira held for commemorating Mushafi Amrohvi in Pakistan.
अमरीका शेर पढ़ने गए थे हमारे दोस्त
ख़ुद दाद ले के आ गए सामान रह गया
दीवान-ए-'हाफ़िज़' इतना पढ़ा एक शख़्स ने
ख़ुद भी वो हो के हाफ़िज़-ए-दीवान रह गया
ख़ुश-क़िस्मती से हम हैं सवार उस जहाज़ पर
साहिल पे जिस जहाज़ का कप्तान रह गया
हर शख़्स पर है कुफ़्र का फ़तवा लगा हुआ
यूँ है तो एक मैं ही मुसलमान रह गया
- पुस्तक : FEE SABEELILLAH (पृष्ठ 21)
- रचनाकार : Dilawar Figar
- प्रकाशन : EDUCATIONAL PUBLISHING HOUSE. DELHI- (2011)
- संस्करण : 2011
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