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आलम आलम इश्क़-ओ-जुनूँ है दुनिया दुनिया तोहमत है

मीर तक़ी मीर

आलम आलम इश्क़-ओ-जुनूँ है दुनिया दुनिया तोहमत है

मीर तक़ी मीर

MORE BYमीर तक़ी मीर

    आलम आलम इश्क़-ओ-जुनूँ है दुनिया दुनिया तोहमत है

    दरिया दरिया रोता हूँ मैं सहरा सहरा वहशत है

    हम तो इश्क़ में ना-कस ठहरे कोई ईधर देखेगा

    आँख उठा कर वो देखे तो ये भी उस की मुरव्वत है

    हाए ग़यूरी जिस के देखे जी ही निकलता है अपना

    देखिए उस की ओर नहीं फिर इश्क़ की ये भी ग़ैरत है

    कोई दम रौनक़ मज्लिस की और भी है इस दम के साथ

    या'नी चराग़-ए-सुब्ह से हैं हम दम अपना भी ग़नीमत है

    ख़त आए ज़ाहिर है हम पर बिगड़ी भी अच्छी सूरत थी

    बारे कहो नाकाम ही हो या काम की भी कुछ सूरत है

    एक वरक़ पर तस्वीरें मैं देखी हैं लैला-ओ-मजनूँ की

    ऐसी सूरत-ए-हाल की अपनी उन दोनों को हैरत है

    ख़ाक से आदम कर के उठाया जिस को दस्त-ए-क़ुदरत ने

    क़द्र नहीं कुछ उस बंदे की ये भी ख़ुदा की क़ुदरत है

    सुब्ह से आँसू नौमीदाना जैसे विदाई आता था

    आज किसू ख़्वाहिश की शायद दिल से हमारे रुख़्सत है

    क्या दिलकश है बज़्म जहाँ की जाते याँ से जिसे देखो

    वो ग़म-दीदा रंज-कशीदा आह सरापा हसरत है

    जब कुछ अपने कने रखते थे तब भी सर्फ़ था लड़कों का

    अब जो फ़क़ीर हुए फिरते हैं 'मीर' उन्हीं की दौलत है

    स्रोत :
    • पुस्तक : मीरियात - दीवान नंo- 5, ग़ज़ल नंo- 1740

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