Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

इलाज-ए-हिज्र ज़रा और करके देखते हैं

ऐन सीन

इलाज-ए-हिज्र ज़रा और करके देखते हैं

ऐन सीन

MORE BYऐन सीन

    रोचक तथ्य

    خمسہ بر غزلِ احمد فراز

    इलाज-ए-हिज्र ज़रा और करके देखते हैं

    नज़ारे हम किसी रश्क-ए-क़मर के देखते हैं

    ख़ुमार-ए-दीद से हम भी सँवर के देखते हैं

    ''सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

    सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं''

    हमें कसक सी जो लाहक़ है चंद सालों से

    नजात पाने को जाते हैं इन मलालों से

    हलाक होते हैं उस की निगह के भालों से

    ''सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से

    सो अपने आप को बर्बाद करके देखते हैं

    सुबू मिज़ाज है सद-चश्म-ए-नग़्मा-साज़ उस की

    वो बे-नियाज़ निगह है सुख़न-तराज़ उस की

    दिल-ए-शक़ी से तो अच्छी है साज़-बाज़ उस की

    ''सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस की

    सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं''

    ग़ज़ल सुनाने का उस को हमें मिला है शरफ़

    सुख़न में हम ने बनाया जो उस को अपना हदफ़

    तो उठ भी सकती है उस की नज़र हमारी तरफ़

    ''सुना है उस को भी है शेर-ओ-शायरी से शग़फ़

    सो हम भी मो'जिज़े अपने हुनर के देखते हैं''

    वो मुस्कुराए तो रुख़ पर गढ़े से पड़ते हैं

    लबों को छूते हैं अल्फ़ाज़ तो सँवरते हैं

    जो लम्स पाते हैं होंटों का तो निखरते हैं

    ''सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं

    ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं''

    वही तो है जिसे हर एक चाँद कहता है

    वो जिस के नूर में सूरज किरन सा बहता है

    वो जिस के हिज्र को सूरज भी छुप के सहता है

    ''सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है

    सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैं''

    कि उस की ज़ुल्फ़ पे तो बदलियाँ खुल आती हैं

    उसी की दीद पे ये क़ुमरियाँ भी गाती हैं

    उसी के नूर में तो बिजलियाँ नहाती हैं

    ''सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं

    सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं''

    बहुत हसीन हैं उस की ख़याल सी आँखें

    वफ़ूर-ए-बादा से रंगीं गुलाल सी आँखें

    जो उन में झाँक के देखो तो ढाल सी आँखें

    ''सुना है हश्र हैं उस की ग़ज़ाल सी आँखें

    सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं''

    कि रसमसा के सना-गर हैं कोंपलें उस की

    सुना है कैफ़ का महवर हैं महफ़िलें उस की

    सुना है शौक़ से बरतर हैं मंज़िलें उस की

    ''सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उस की

    सुना है शाम को साए गुज़र के देखते हैं''

    सुना है ग़ुंचा-दहन सिर्र-ए-सद-मलाहत है

    सुना है जान-ए-ग़ज़ल सर-बसर सबाहत है

    सुना है उस की अजब रुस्तख़ेज़ क़ामत है

    ''सुना है उस की सियह-चश्मगी क़यामत है

    सो उस को सुरमा-फ़रोश आह भर के देखते हैं''

    जो मुस्कुराए तो याक़ूत-ए-लब बहलते हैं

    सुना है उस के तबस्सुम से दिल पिघलते हैं

    अक़ीक़-होंटों पे जब क़हक़हे मचलते हैं

    ''सुना है उस के लबों से गुलाब जलते हैं

    सो हम बहार पे इल्ज़ाम धर के देखते हैं''

    है बात और ही और हर अदा हसीं उस की

    सबा के दोष पे वो ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं उस की

    कि दिल पे क़हर हैं बातें वो दिल-नशीं उस की

    ''सुना है आइना-तिमसाल है जबीं उस की

    जो सादा दिल हैं उसे बन-सँवर के देखते हैं''

    कि देखते जो हैं ख़ुद को वो उस के दर्पन में

    हुए हैं इतने वो मसहूर उस की बन-ठन में

    वो ख़ुद को भूल के खोए हैं इक नए-पन में

    ''सुना है जब से हमाइल हैं इस की गर्दन में

    मिज़ाज और ही लाल-ओ-गुहर के देखते हैं''

    सुना है लम्स को पाने के उस के अरमाँ में

    वफ़ूर-ए-कैफ़ के अफ़्सूँ में शौक़-ए-जानाँ में

    इसी ख़याल में खो कर कभी शबिस्ताँ में

    ''सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ में

    पलंग ज़ाविए उस की कमर के देखते हैं''

    ग़ुरूर-ए-हुस्न के फूलों की ऐसी-तैसी है

    गो ख़ुशबू उन की भी बिल्कुल उसी के जैसी है

    पर उन की आन यहाँ पाश पाश कैसी है

    ''सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है

    कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं''

    नज़ीर कोई भी उस का सर-ए-बिलाद नहीं

    कोई भी हुस्न में उस हुस्न से ज़ियाद नहीं

    नहीं जो देख के उस को कोई जो शाद नहीं

    ''वो सर्व-क़द है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहीं

    कि इस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं''

    अजीब चीज़ है जल्वा जमाल-ए-कामिल का

    हटे कभी कि जो पर्दा है उस के महमिल का

    ख़याल फिर नहीं रहता है कोई मंज़िल का

    ''बस इक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल का

    सो रह-रवान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं''

    सुना है उस के शबिस्ताँ से मुन्फ़इल है बहिश्त

    सुना है उस के शबिस्ताँ से मुज़्महिल है बहिश्त

    सुना है उस के शबिस्ताँ से मुंदमिल है बहिश्त

    ''सुना है उस के शबिस्ताँ से मुत्तसिल है बहिश्त

    मकीं उधर के भी जल्वे इधर के देखते हैं''

    चले तो गर्दिशें सब ए'तिराफ़ करती हैं

    चले तो रास्ता उस का वो साफ़ करती हैं

    चले तो उस के सलीक़े का लाफ़ करती हैं

    ''रुके तो गर्दिशें उस का तवाफ़ करती हैं

    चले तो उस को ज़माने ठहर के देखते हैं''

    ख़याल-ओ-ख़्वाब की इक अंजुमन उसे देखे

    और इस तरह कि ब-दीवाना-पन उसे देखे

    कभी दरीचे से गुज़री पवन उसे देखे

    ''किसे नसीब कि बे-पैरहन उसे देखे

    कभी कभी दर-ओ-दीवार घर के देखते हैं''

    अजब जुनूँ के ये अपने मुआलिजे ही सही

    दिल-ए-ग़रीब के अपने मुग़ालते ही सही

    ये बालक-हट के सबब के मुतालबे ही सही

    ''कहानियाँ ही सही सब मुबालग़े ही सही

    अगर वो ख़्वाब है ता'बीर करके देखते हैं''

    उसी के कूचे में रह लें कि दर-ब-दर जाएँ

    उसी के दर पे ही बैठें या अपने घर जाएँ

    अब उस के शहर को छोड़ें या इस में मर जाएँ

    ''अब उस के शहर में ठहरें कि कूच कर जाएँ

    'फ़राज़' आओ सितारे सफ़र के देखते हैं''

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

    Get Tickets
    बोलिए