छुड़ा के बुत की परस्तिश सिखाई थी वहदत
छुड़ा के बुत की परस्तिश सिखाई थी वहदत
धर्मपान गुप्ता वफ़ा देहलवी
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छुड़ा के बुत की परस्तिश सिखाई थी वहदत
मिरे ख़याल की तरवीज आम हो जाए
सिखाया अहल-ए-अरब को बराबरी का दर्स
कि इम्तियाज़ का क़िस्सा तमाम हो जाए
सियासियात से मज़हब मिला दिया तू ने
कि दीन-ओ-दुनिया का सब इंतिज़ाम हो जाए
तिरे ख़याल में ये सख़्त ना-मुनासिब था
बशर कोई भी बशर का ग़ुलाम हो जाए
रिफ़ाह-ए-आम ही तेरा था जब कि नस्बुल-'ऐन
लक़ब न क्यों तिरा ख़ैर-उल-अनाम हो जाए
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