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आदर्श

MORE BYअंजुम आज़मी

    लैला-ए-शौक़ की ज़ुल्फ़ों से उलझ कर मैं ने

    देख ली हुस्न के आईने में तस्वीर-जुनूँ

    करवटें लेता है इस तरह ये एहसास-ए-जमाल

    जैसे गिरती हुई दीवार पे हो ख़िज़्र का हाथ

    धीमे धीमे से चली वादी-ए-ऐमन की हवा

    ग़म के हाथों भी सँवर जाती है तारों-भरी रात

    कौन कहता है कि दुनिया को भुला बैठा हूँ

    टूट सकता है भला यूँ भी किसी का पिंदार

    मौत हो जाएगी पामाल इन्हीं राहों में

    लग़्ज़िश-ए-पा में सिमट आया है वहशी किरदार

    जब कभी गेसू-ए-मुश्कीं से उठी काली घटा

    पहलू-ए-शौक़ से उभरा है जुनूँ का तूफ़ाँ

    शो'ला-ए-बर्क़-ओ-शरर फूल बना किस के लिए

    बेच आया है कोई उस की गली में ईमाँ

    ख़्वाब सा देख रहा हूँ मगर इस महफ़िल से

    तोड़ कर जाम-ओ-सुबू आज चला आया हूँ

    मय-ए-गुल-रंग से छलकाऊँगा हर साग़र को

    अपने हमराह दो आलम का नशा लाया हूँ

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