आसेब
मुझे डराया गया था
बचपन में एक आसेब से
वो आसेब!
जिस का फूलों के बीच घर था
वो शोख़ फूलों की छाँव में पलने वाली ख़ुशबू का हम-सफ़र था
मुझे डराया गया था लेकिन
तवील गर्मी की हर सुहानी सी दोपहर को
मैं अपनी माँ की नज़र बचा कर
गुलाबी नींदों की रेशमी उँगलियाँ छुड़ा कर
दहकते फूलों के दरमियाँ खेलती थी पहरों
अजीब दिन थे
कि उन दिनों में
दहकते फूलों के बीच ख़ुशबू के हम-सफ़र से
मिरी मुलाक़ात जब हुई थी
मैं डर गई थी
कि मुझ में बचपन से अजनबी ख़ौफ़ पल रहा था
मुझे भी आसेब हो गया था
मगर ये आसेब!
अब तो मुझ में उतर रहा है
हसीन फूलों के बीच ख़्वाबों के सब्ज़ मौसम में
उस के हाथों में हाथ डाले
मैं ख़ुशबुओं की तरह हवाओं में उड़ रही हूँ
- पुस्तक : Kunj piile phuulo.n kaa (पृष्ठ 122)
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