अकड़ू ख़ान
बे-समझे लड़ जाते हैं
हर इक से टकराते हैं
बन जाते हैं ख़ुद नादान
ये हैं मिस्टर अकड़ू ख़ान
बात बात पर तनते हैं
बड़े बहादुर बनते हैं
रहती है आफ़त में जान
ये हैं मिस्टर अकड़ू ख़ान
मार भी ये खा जाते हैं
लेकिन कब शरमाते हैं
बंद नहीं करते हैं ज़बान
ये हैं मिस्टर अकड़ू ख़ान
अपनी मौज में बहते हैं
अकड़े अकड़े रहते हैं
इन से डरता है शैतान
ये हैं मिस्टर अकड़ू ख़ान
अच्छा खाना है मर्ग़ूब
दा’वत खाते हैं ये ख़ूब
दिखलाते हैं झूटी शान
ये हैं मिस्टर अकड़ू ख़ान
दौड़ नहीं पाते हैं ये
पीछे रह जाते हैं ये
लेकिन डींगते हैं हर आन
ये हैं मिस्टर अकड़ू ख़ान
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