अंदेशे
जिस दिल में ख़ुदा का ख़ौफ़ रहे बातिल से हिरासाँ क्या होगा
जो मौत को ख़ुद लब्बैक कहे वो हक़ से गुरेज़ाँ क्या होगा
आईन-ए-चमन-बंदी भी नहीं दस्तूर-ए-नवा-संजी भी नहीं
अब इस से ज़ियादा गुलशन का शीराज़ा परेशाँ क्या होगा
अरबाब-ए-मोहब्बत से ये कहो शिकवे न करें कुछ काम करें
जो ज़ुल्म-ओ-सितम पर इतराए शिकवों से पशेमाँ क्या होगा
जो लोग हवा के साथी हैं वो अपने ख़ुदा के बाग़ी हैं
इस जुर्म-ए-बग़ावत से बढ़ कर ईमान का नुक़साँ क्या होगा
मुद्दत से कशाकश जारी है सय्याद में और गुल-चीनों में
तंज़ीम-ए-गुलिस्ताँ होने तक अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा
जिस कश्ती की पतवारों को ख़ुद मल्लाहों ने तोड़ा हो
उस कश्ती के हमदर्दों को फिर शिकवा-ए-तूफ़ाँ क्या होगा
जिस चोट से दिल में हलचल है आहों में वो ज़ाहिर क्या होगी
सीने में जो महशर बरपा है अश्कों से नुमायाँ क्या होगा
इस शाम-ए-ख़िज़ाँ ने अब तक तो हर तरह से पर्दा-दारी की
जब सुब्ह-ए-बहार आ जाएगी ऐ तंगी-ए-दामाँ क्या होगा
जल्वत कि ख़ल्वत हो 'माहिर' दिल खोया खोया रहता है
इस ग़म की तलाफ़ी कब होगी इस दर्द का दरमाँ क्या होगा
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