बोल! अरी ओ धरती बोल!
रोचक तथ्य
In a Mushaira, when a drunk Majaz succesfully recited his Nazm, 'Bol ari O Dharti Bol', Hansraj Rahbar teasingly asked, 'Majaz Bhai, did you compose this Nazm drunk?', Majaz extemporanously replied, 'I drank afterwards, too'.
बोल! अरी ओ धरती बोल!
राज सिंघासन डाँवाडोल
बादल बिजली रैन अँधयारी
दुख की मारी प्रजा सारी
बूढ़े बच्चे सब दुखिया हैं
दुखिया नर हैं दुखिया नारी
बस्ती बस्ती लूट मची है
सब बनिए हैं सब ब्योपारी
बोल! अरी ओ धरती बोल!
राज सिंघासन डाँवाडोल
कलजुग में जग के रखवाले
चाँदी वाले सोने वाले
देसी हों या परदेसी हों
नीले पीले गोरे काले
मक्खी भिंगे भिन भिन करते
ढूँडे हैं मकड़ी के जाले
बोल! अरी ओ धरती बोल!
राज सिंघासन डाँवाडोल
क्या अफ़रंगी क्या तातारी
आँख बची और बर्छी मारी
कब तक जनता की बेचैनी
कब तक जनता की बे-ज़ारी
कब तक सरमाया के धंदे
कब तक ये सरमाया-दारी
बोल! अरी ओ धरती बोल!
राज सिंघासन डाँवाडोल
नामी और मशहूर नहीं हम
लेकिन क्या मज़दूर नहीं हम
धोका और मज़दूरों को दें
ऐसे तो मजबूर नहीं हम
मंज़िल अपने पाँव के नीचे
मंज़िल से अब दूर नहीं हम
बोल! अरी ओ धरती बोल!
राज सिंघासन डाँवाडोल
बोल कि तेरी ख़िदमत की है
बोल कि तेरा काम किया है
बोल कि तेरे फल खाए हैं
बोल कि तेरा दूध पिया है
बोल कि हम ने हश्र उठाया
बोल कि हम से हश्र उठा है
बोल कि हम से जागी दुनिया
बोल कि हम से जागी धरती
बोल! अरी ओ धरती बोल!
राज सिंघासन डाँवाडोल
- पुस्तक : Aahang (पृष्ठ 175)
- रचनाकार : Asrar-ul-Haq Majaz
- प्रकाशन : National Council for Promotion of Urdu Language, Delhi (2011)
- संस्करण : 2011
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.