ख़बर
बैल ने गाए का मुँह चूमा ख़बर बन न सकी
देखने वालों को इरफ़ान-ए-नज़र हो न सका
घोड़े ने घोड़ी का मुँह चूमा ख़बर बन न सकी
हिनहिनाया पे कोई अहल-ए-ख़बर हो न सका
ये ख़बर है कि सर-ए-राह किसी लड़की को
चूमता पकड़ा गया एक शराबी लड़का
वहीं क़ानून की ज़ंजीर-ए-गिराँ तौक़ बनी
वहीं अख़बार की सुर्ख़ी ने उन्हें जा पकड़ा
मैं यही सोच रहा था कि सर-ए-शाम मुझे
जाते सूरज के भी अतवार कुछ ऐसे ही मिले
उस का मुँह ज़र्द था एहसास-ए-जुदाई होगा
उस ने इक बदली का मुँह चूम लिया चुपके से
दफ़अ'तन बदली का मुँह सुर्ख़ हुआ और हया
दौड़ी ख़ूँ बन के रग-ओ-पै में कि गुलनार हुई
उस के दामन पे छलक उट्ठे सितारे आँसू
और सूरज की तरह ख़ुद भी वहीं डूब गई
वही तारे थे मगर रात के अख़बार-फ़रोश
ये ख़बर शाम से ही सारे फ़लक पर पहुँची
पहले तो लाखों दरीचों से निगहबाँ झाँके
चाँदनी छिटकी तो फिर चाँद ने की रखवाली
सुब्ह-दम नींद के माते थे सभी अहल-ए-फ़लक
सूरज आया तो किसी को न रहा इस का ख़याल
वही बदली थी उफ़ुक़ पर वही उनवान-ए-हया
दोनों तकते रहे मबहूत निगाहों से जमाल
फिर मोहब्बत ने किया सब्त सलाम-ए-रंगीं
सुर्ख़ बदली का लहू दौड़ गया चार तरफ़
दोनों ख़ुश थे उन्हें मालूम था आज़ाद हैं वो
उन का मिलना नहीं इंसाँ की निगाहों का हदफ़
मैं ने देखी है मगर दोनों की ये गुस्ताख़ी
मैं ख़बर देता हूँ अख़बार को देखो तो सही
- पुस्तक : shaahraah(12) (पृष्ठ 68)
- संस्करण : 1950
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