मेरा वतन
रंग-ओ-नस्ल-ओ-मज़ाहिब का आ'ला चमन
हिन्द मेरा वतन हिन्द मेरा वतन
रक्खे इस का सलामत ख़ुदा बाँकपन
हिन्द मेरा वतन हिन्द मेरा वतन
इस की नदियाँ अक़ीदत की मेराज हैं
सरज़मीं है दुल्हन कोह सरताज हैं
गुलशनों पर निराली शगुफ़्ता फबन
मौसमों का यहाँ अपना मेआ'र है
और हर-सू परिंदों की चहकार है
झूमे सावन सजा कर हसीं अंजुमन
लहलहाते हुए खेत रौनक़ तिरी
ख़ूब बाग़ात-ओ-सहराओं की दिलकशी
हुस्न बाद-ए-सबा में है बू-ए-समन
हैं लब-ए-आबशारों पे नग़्मे तिरे
हुस्न-ओ-शोख़ी बढ़ाने को ग़ुंचे खुले
क्यों न भँवरे हों ख़ुश तितलियाँ हों मगन
शाहराहें बढ़ाती हैं अज़्मत तिरी
और पगडंडियाँ शान-ओ-शौकत तिरी
तेरा मशहूर दुनिया में है इल्म-ओ-फ़न
तेरे सीना से चश्मे उबलते हुए
गोद में शोख़ दरिया मचलते हुए
तुझ से रखते हैं उल्फ़त मोहब्बत लगन
ईद होली तो जश्न-ए-विलादत कहीं
है क्रिसमस की रंगीं लताफ़त कहीं
तेरी तहज़ीब इक ख़ुशनुमा पैरहन
जिस्म के रेज़ा-रेज़ा की आवाज़ है
'पैकर' अपने वतन पर मुझे नाज़ है
इस पे क़ुर्बान जाए मिरी जान-ओ-तन
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