मुफ़क्किर की मौत
रोचक तथ्य
(Bertrand Russell's Funeral)
ये इक बाग़ी मुफ़क्किर का जनाज़ा है
हिला डाला था अपनी काफ़िराना फ़िक्र से जिस ने
यकायक सारी दुनिया को
फ़क़त बीस आदमी हमराह हैं इस के जनाज़े के
ज़माना जिस की क़द्र-ओ-मंज़िलत करता था और जिस के ख़यालों से सँवरता था
वो बाग़ी जा रहा है आज अकेला एक अलबेला मुसाफ़िर था
करोड़ों मोमिनों पर था जो भारी ऐसा काफ़िर था
सितारे क्यूँ चमकते हैं दिलों का माजरा क्या है
सतीज़ा-ख़ू है क्यूँ इंसाँ मोहब्बत का मज़ा क्या है
ये तहक़ीक़ इस का मज़हब था
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोएगी
- पुस्तक : Gyan Marg ky Nazme.n (पृष्ठ 54)
- रचनाकार : KRISHN MOHAN
- प्रकाशन : National Acadami, Ansari Market, Daryaganj (1974)
- संस्करण : 1974
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