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रेस्तौरान में

मुस्तफ़ा ज़ैदी

रेस्तौरान में

मुस्तफ़ा ज़ैदी

MORE BYमुस्तफ़ा ज़ैदी

    हम इक चाय की मेज़ पे कर

    इश्क़ का क़िस्सा ले बैठे थे

    हर ख़ातून बड़ी कोमल थी

    मर्द निहायत दिल वाले थे

    मो'तबरान-ए-शहर में इक ने

    उस को फ़्लातूनी ठहराया

    उन की शरीक-ए-हयात ने उस पर

    तंज़ से ''जी-अच्छा!'' फ़रमाया

    पादरियों में इक ये बोले

    इश्क़ घरेलू हो तो इस से

    नज़्म-ए-शिकम बरहम होता है

    इक लड़की ने पूछा ''कैसे?''

    इक ख़ातून ने ये फ़रमाया

    इश्क़ में है तलवार की तेज़ी

    और इस दौरान में उठ कर

    चाय की प्याली शौहर को दी

    एक गोशा बिल्कुल ख़ाली था

    तुम भी जो आतीं हम मिल रहते

    इश्क़ का मतलब सब पा जाते

    गो हम मुँह से कुछ भी कहते

    RECITATIONS

    आतिफ़ बलोच

    आतिफ़ बलोच,

    आतिफ़ बलोच

    रेस्तौरान में आतिफ़ बलोच

    स्रोत :
    • पुस्तक : kulliyat-e-mustafa zaidii(koh-e-nida (पृष्ठ 107)

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