'सज्जाद-ज़हीर' के नाम
रोचक तथ्य
This was written at the death of Sajjad Zaheer, General Secretary of Pakistan Communist Party, a founder-member of Progressive Writers’ Association of which Faiz was a member, and one of Faiz’s fellow prisoners in the Rawalpindi Conspiracy case.
न अब हम साथ सैर-ए-गुल करेंगे
न अब मिल कर सर-ए-मक़्तल चलेंगे
हदीस-ए-दिल-बराँ बाहम करेंगे
न ख़ून-ए-दिल से शरह-ए-ग़म करेंगे
न लैला-ए-सुख़न की दोस्त-दारी
न गम-हा-ए-वतन पर अश्क-बारी
सुनेंगे नग़्मा-ए-ज़ंजीर मिल कर
न शब भर मिल के छलकाएँगे साग़र
ब-नाम-ए-शाहिद-ए-नाज़ुक-ख़यालाँ
ब-याद-ए-मस्ती-ए-चश्म-ए-ग़ज़ालाँ
ब-नाम-ए-इम्बिसात-ए-बज़्म-ए-रिंदाँ
ब-याद-ए-कुल्फ़त-ए-अय्याम-ए-ज़िंदाँ
सबा और उस का अंदाज़-ए-तकल्लुम
सहर और उस का आग़ाज़-ए-तबस्सुम
फ़ज़ा में एक हाला सा जहाँ है
यही तो मसनद-ए-पीर-ए-मुग़ाँ है
सहर-गह अब उसी के नाम साक़ी
करें इत्माम-ए-दौर जाम साक़ी
बिसात-ए-बादा-ओ-मीना उठा लो
बढ़ा दो शम-ए-महफ़िल बज़्म वालो
पियो अब एक जाम-ए-अल-विदाई
पियो और पी के साग़र तोड़ डालो
- पुस्तक : Nuskha Hai Wafa (Kulliyat-e-Faiz) (पृष्ठ 526)
- प्रकाशन : Educational Publishing House (2009)
- संस्करण : 2009
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