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शिकस्त-ए-एहसास

अतहर अज़ीज़

शिकस्त-ए-एहसास

अतहर अज़ीज़

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    रोचक तथ्य

    (ایک شام اپنے ایک دوست کو اداس دیکھ کر)

    दोस्त दोस्त मुझे इतना बता दे तो सही

    आज की शाम ये चेहरे पे उदासी कैसी

    कौन सी याद चली आई तुझे बहकाने

    कौन सा ज़ख़्म महक उट्ठा है यूँ तड़पाने

    शबनमी सोच ने वो कौन सी साज़िश कर दी

    सुरमई फ़िक्र ने वो कौन सी करवट बदली

    मैं ने माना कि लबों पर वो दमक ही रही

    मैं ने माना कि निगाहों में चमक ही रही

    मैं ने माना कि उमंगों की हैं आँखें हैराँ

    मैं ने माना कि ख़मोशी है उमीदों की ज़बाँ

    सच है ये भी कि ख़यालात ने दम तोड़ दिए

    ये भी सच है कि तमन्नाओं ने मुँह फेर लिए

    लेकिन इतना तो बता कल भी ये तन्हाई थी

    कल भी एहसास पे अश्कों की घटा छाई थी

    कल भी होंटों पे मुसल्लत थी उदासी की लकीर

    कल भी किरनों को तरसते रहे ख़्वाबों के सफ़ीर

    फिर भी हम हँसते रहे हँसते थे हँसते रहे

    चंद लम्हों के लिए फिर भी चहकते ही रहे

    आज की शाम तो दोस्त है फिर शाम-ए-ख़ुशी

    आज की शाम ये चेहरे पे उदासी कैसी

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