सूरज की तपिश पानी की बुख़ारात में तब्दील करके फ़ज़ा में उड़ा देती
सूरज की तपिश पानी की बुख़ारात में तब्दील करके फ़ज़ा में उड़ा देती
जावेद नदीम
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सूरज की तपिश पानी को बुख़ारात में तब्दील करके फ़ज़ा में उड़ा देती
माहौल की बुरूदत जब शिद्दत इख़्तियार कर लेती है तो ज़मीन बर्फ़ के
बोझ तले कसमसाने लगती है
मैं तुम से ये नहीं कहूँगा
तुम ने ऐसा क्यों किया
तुम ऐसा क्यों करते हो
तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए
ज़िंदगी के हक़ाएक़ से फ़रार कभी सुकून नहीं दे सकता
हक़ीक़ी सुरूर उन्हें क़ुबूल कर लेने में है
अगर तुम समझने वाले हो समझ जाओगे
तुम
ठहरा हुआ पानी हो
मैं तुम्हें बहाव में देखना चाहता हूँ
तुम्हारी रवानी बड़ी दिलकश होगी
अगर तुम बह सके
ज़िंदगी के मसाइल
तुम्हारी ज़ात की सत्ह पर उगे पेड़ पौदे हैं
पेड़ सत्ह से क़द-आवर नज़र आते हैं
मगर
बुलंदी से छोटे
और ख़ूबसूरत भी
तुम अपनी ज़ात में बुलंद हो जाओ
ज़िंदगी के मसाइल छोटे हो जाएँगे
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