वसिय्यत
रोचक तथ्य
(To his son upon the death of Shad Arfi)
गुड्डू बेटे रोते क्यूँ हो
क़िस्सा सुनने की ख़्वाहिश है
अच्छा अपने आँसू पोंछो
लो हम इक क़िस्सा कहते हैं
इकसठ साल गुज़रते हैं
अफ़्ग़ानों की इक बस्ती में लड्डन-ख़ाँ ने जन्म लिया था
दारोग़ा के बेटे थे वो नाना उन के मौलाना थे
खाता-पीता घर था उन का
लड्डन-ख़ाँ अच्छे बच्चे थे बिल्कुल वैसे जैसे तुम हो
उन के घर वाले भी उन से उतनी ही उल्फ़त करते थे जितनी हम तुम से करते हैं
जब वो थोड़े बड़े हुए तो
नाना उन को मकतब में दाख़िल कर आए
लड्डन-ख़ाँ ने पढ़ना सीखा
लिखना सीखा लड़ना सीखा आख़िर वो अफ़्ग़ानी भी थे
चौदह पंद्रह बरसों ही में लड्डन-ख़ाँ को ये बे-फ़िक्री रास न आई
नाना और अब्बू दोनों ने लड्डन-ख़ाँ से कट्टी कर ली
मरना जीना तुम क्या समझो
तब मजबूरन
लड्डन-ख़ाँ ने पढ़ना छोड़ा
अपने घर से नाना जोड़ा
ट्यूशन करते लशटम-पशटम अपने घर का ख़र्च चलाते
उन की अम्माँ को राजा से थोड़ी सी पेंशन मिलती थी काम किसी सूरत चल जाता
माँ ने उन की शादी कर दी
लेकिन बीवी ख़ुश-क़िस्मत थी जिस ने जल्द ही कई कर ली
गुड्डू बेटे
होनी हो कर ही रहती है
मकतब में रह कर लड्डन-ख़ाँ ग़ज़लें कहना सीख चुके थे
अफ़्ग़ानी होने के नाते लोगों से डरते भी नहीं थे
अपनी ग़ज़लों में नज़्मों में तीखी तीखी बातें कहते लोगों पर फबती कसते थे
अपने हों या ग़ैर सभी पर
सच कहने में सच लिखने में बाक न करते ये तो एक नशा होता है
बस फिर क्या था अपने ग़ैर सभी उन के दुश्मन बन बैठे
ट्यूशन छूटे वी-मेनी की वी-मेनी से मुंशी-गीरी
दर दर भटके बाज़ न आए
कड़वी तीखी ग़ज़लें नज़्में कह कह कर अम्बार लगाया
इतने से भी चल सकता था
लेकिन वो तो राजा-जी पर फबती कस कर अम्मी की पेंशन ले डूबे
बोलो उन की क्या अटकी थी राजा जो कुछ भी करता था लड्डन-ख़ाँ से क्या मतलब था
अम्मी बेचारी इस ग़म में कुढ़ कुढ़ कर परदेस सिधारीं यूँ समझो बस रूठ गईं वो लड्डन-ख़ाँ से
लेकिन बेटा मरने में पैसे लगते हैं लड्डन-ख़ाँ ने घर भी बेचा
आगे पीछे कोई नहीं था अब तो लड्डन-ख़ाँ खुल-खेले
सच्ची सच्ची बातें कह कर कड़वी तीखी ग़ज़लें लिख कर ज़हर-आलूदा नज़्में पढ़ कर
एक सिरे से सब लोगों को दुश्मन-दर-दुश्मन कर बैठे
सारी दुनिया दुश्मन हो तो लड्डन-ख़ाँ बचते भी कैसे
सब ने मिल कर घेरा डाला
आगे दुश्मन पीछे दुश्मन दाएँ दुश्मन बाएँ दुश्मन ऊपर दुश्मन नीचे दुश्मन
लड्डन-ख़ाँ में अक़्ल नहीं थी अब भी चिकनी-चुपड़ी बातें कर के चुपके से बच लेते
लड्डन-ख़ाँ ने अपनी ग़ज़लें अपनी नज़्में सारी चीज़ें छोड़ कर
चुपके से मर जाने ही को बेहतर जाना
गुड्डू मेरे प्यारे बेटे
मेरे राज दुलारे बेटे
देखो तुम ग़ज़लें मत कहना
बेटे तुम नज़्में मत लिखना
लिखना ही पड़ जाए तो फिर सच मत लिखना
देखो बेटा
सच मत लिखना
सच मत लिखना
- पुस्तक : kamaan (पृष्ठ 360)
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