बहुत अज़ीज़ है मुझ को वतन अज़ीज़ वतन
वतन की ख़ाक है अम्बर मिरी निगाहों में
वतन के क़तरे समुंदर मिरी निगाहों में
वतन के ज़र्रे हैं गौहर मिरी निगाहों में
वतन के ख़ार गुल-ए-तर मिरी निगाहों में
बहुत अज़ीज़ है मुझ को वतन अज़ीज़ वतन
मिरी निगाहों में वक़अत है तूर-ए-सीना की
मिरी निगाहों में अज़्मत है अर्श-ए-आली की
मिरी निगाहों में इज़्ज़त है सारी दुनिया की
मगर है ख़ाक-ए-वतन सुर्मा चश्म-ए-बीना की
बहुत अज़ीज़ है मुझ को वतन अज़ीज़ वतन
मिरे वतन में है गौतम का फ़ैज़-ए-रूहानी
मिरे वतन में है गीता की शम्-ए-नूरानी
मिरे वतन में है गंगा की पाक-दामानी
मिरे वतन में है नूर-ए-अज़ल की अर्ज़ानी
बहुत अज़ीज़ है मुझ को वतन अज़ीज़ वतन
वतन की गर्द वतन की ज़मीं वतन की हवा
वतन की शाम वतन की सहर वतन की फ़ज़ा
वतन के कूचे वतन के चमन वतन की अदा
है याद उन की इलाज अपने रंज-ए-ग़ुर्बत का
बहुत अज़ीज़ है मुझ को वतन अज़ीज़ वतन
बुलंद-रुत्बा-ए-गर्दूं से कार-गाह-ए-वतन
बुलंद-हौसला-ए-दिल से बारगाह-ए-वतन
कलीम-ए-दिल के लिए तूर-ए-जल्वा-गाह-ए-वतन
नशात-ए-रूह की ज़ामिन है सज्दा-गाह-ए-वतन
बहुत अज़ीज़ है मुझ को वतन अज़ीज़ वतन
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