जान-ए-'सहबा' सच कहो पैहम सहारे याद हैं
वो निगाह-ए-अव्वलीं के क्या शरारे याद हैं
याद हैं वो दर्द की बढ़ती हुई बेताबियाँ
सर्द आहें ख़ुश्क-लब आँसू के धारे याद हैं
वो मय-ए-उल्फ़त पिला देना निगाह-ए-मस्त से
वादा-ए-रंगीं के वो अल्फ़ाज़ प्यारे याद हैं
नौ-ब-नौ साज़-ए-मोहब्बत की वो नग़्मा-संजियाँ
वो तरन्नुम वो तबस्सुम वो नज़ारे याद हैं
याद हैं वो बज़्म-ए-इशरत की सुकूँ-सामानियाँ
शब की ख़ामोशी वो दरिया के किनारे याद हैं
वो फ़ज़ा-ए-रूह-परवर वो बहार-ए-जाँ-फ़ज़ा
वस्ल की शब के तुम्हें वो चाँद तारे याद हैं
मेरी जानिब वो भरी महफ़िल में ख़ामोशी के साथ
अपनी चश्म-ए-मस्त के रंगीं इशारे याद हैं
फिर ज़रा धीमे सुरों में गुनगुनाना शे'र का
फूल से झड़ते हुए गर्दूं के तारे याद हैं
आधी आधी रात तक शाम-ए-मोहब्बत की बहार
सुब्ह की तनवीर में जल्वे तुम्हारे याद हैं
याद हैं 'सहबा' शबाब-ओ-शेर की रंगीनियाँ
हाँ हदीस-ए-इश्क़ के अल्फ़ाज़ सारे याद हैं
आज भी मैं सुन रहा हूँ नग़्मा-हा-ए-जाँ-फ़ज़ा
दौड़ती है साज़-ए-हस्ती में तिरी रंगीं नवा