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ये नफ़रतें क्यों

मलिका नसीम

ये नफ़रतें क्यों

मलिका नसीम

MORE BYमलिका नसीम

    ये नफ़रतों की बिना जाने किस ने डाली है

    मोहब्बतों से भरा है वतन का हर ज़र्रा

    हवा चले तो हर इक घर को

    ज़िंदगी दे दे

    घटा जो बरसे तो बंजर ज़मीं हरी कर दे

    बहार आए तो देखे शाह और फ़क़ीर

    गुलों के रंग से धरती की

    गोदियाँ भर दे

    ये नफ़रतों का चलन फिर कहाँ से आया है

    कभी घटाओं ने ये भेद-भाव रक्खा है

    हवाओं ने कभी दैर-ओ-हरम को परखा है

    सहर की धूप सोचे कहाँ निकलना है

    छाँव देखे किसी राहगीर का मंसब

    तो फिर ये ज़हर की बूँदें कहाँ से आई हैं

    किसी के साथ ज़रा दूर चल के देखो तो

    किसी के हाथ को हाथों में ले के देखो तो

    किसी के दर्द को पलकों से चुन के देखो तो

    हटा दो आँखों से पर्दे ये नफ़रतों के अगर

    सब एक सा लगे का'बा हो या कलीसा हो

    कोई राम का मंदिर बाबरी मस्जिद

    गुरुद्वारे के दर पर किसी का पहरा हो

    दिलों को झुकने झुकाने का फ़न अगर जाए

    जहाँ से तफ़रक़ा-बाज़ी का हर चलन मिट जाए

    'अशोक'-ओ-'अकबर'-ओ-'गौतम' ने फ़र्क़ कब रक्खा

    चले थे 'जौहर'-ओ-'गाँधी' भी एक साथ सदा

    लिए 'जवाहर'-ओ-'इक़बाल' प्रेम की सौग़ात

    ये सच है

    नानक-ओ-चिश्ती का ख़्वाब एक ही था

    तो उन के ख़्वाबों की ता'बीर क्यों सच कर दें

    मोहब्बतों से ज़माने में रौशनी भर दें

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