ये तमन्ना अबस
उसे देखने की तमन्ना अबस
वो कैसा लगेगा
अभी धुँदली धुँदली लकीरों ने चेहरा बनाया नहीं
अभी उस की आवाज़ भी रेशा रेशा है
उस ने गुज़रती हुई साअ'तों को बताया नहीं
अभी बर्फ़ की तह के नीचे हैं आँखों की झीलें
अभी झील की मछलियाँ ज़र्द सूरज की किरनों से महरूम हैं
मगर क्या ख़बर
वो अज़ल से अबद तक इसी कैफ़ियत में रहे
या मिरी आँख उस की बदलती हुई रंगतों से शनासा न हो
मैं उसे क्यूँ अधूरा कहूँ
मेरी आँखें ही शायद मुकम्मल न हो
यही सोचते सोचते मुझ को नींद आ गई
और हवा देर तक मेरे कानों में कहती रही
देख ले देख ले
मैं ने घबरा के आँखें उठाईं
वहाँ तीरगी के सिवा और कोई न था
मैं ने दिल से कहा
रात काफ़ी पड़ी है अभी स्वर हैं
स्वर हैं
अभी नींद का पहला झोंका भी आया न था
फिर हवा ने कहा देख ले देख ले
ख़ामुशी रंग है
तीरगी की सदा संग है
बनते बनते हुए रोज़-ओ-शब नक़्श-ए-पा से ज़्यादा नहीं
और तू सोचता है कि तकमील हो
चेहरे इतने शनासा हों तो उन को पहचान ले
ये तमन्ना अबस
- पुस्तक : auraq salnama magazines (पृष्ठ e-261 p-249)
- रचनाकार : Wazir Agha,Arif Abdul Mateen
- प्रकाशन : Daftar Mahnama Auraq Lahor (1967 )
- संस्करण : 1967
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