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ज़रा सोचो

असना बद्र

ज़रा सोचो

असना बद्र

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    फ़र्ज़ करो कि सारे जानवर बात भी करते हम से

    उन के जो जी में जाता कह देते एक दम से

    दरवाज़े पर कुत्ता कहता भूके हैं दो दिन के

    कोई दवा भी दे दो देखो मक्खी ज़ख़्म पे भिनके

    बावर्ची-ख़ाने में च्यूँटी शकर माँगती रहती

    बस दो दाने बस दो दाने हर फेरे पर कहती

    चिड़िया उड़ते फिरते खिड़की पर आवाज़ लगाती

    बच्चों के कमरे में छुप कर दाल के दाने खाती

    गए बैल सब्ज़ी के ठेले वालों से लड़ जाते

    डंडे खा कर गालियाँ बकते दिल की आग बुझाते

    बिल्ली दूध का प्याला पकड़े गोश्त माँगती रहती

    दिन भर लेटी दादी जैसी अपनी बात ही कहती

    बकरे की क़ुर्बानी पर कुछ बकरे मातम करते

    मुर्ग़े भी इस मज्लिस में मुँह लटका कर ग़म करते

    सास बहू के झगड़े की छिपकलियाँ शाहिद होतीं

    शौहर की आमद पर सारा क़िस्सा वो ही रोतीं

    ग़रज़ के सारी दुनिया में इक शोर सा बरपा रहता

    चुप हो जाओ चुप हो जाओ सारा आलम कहता

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