ज़्याबतीस के मरीज़
रोचक तथ्य
ये नज़्म 19अगस्त 1983 को डायबिटीज क्लब के वार्षिक उत्सव को पढ़ी गयी
वो मरीज़ान-ए-ज़्याबतीस जो आए हैं यहाँ
उन में बच्चे भी हैं शामिल और बूढे और जवाँ
इस ज़माने में कि जब है मुल्क में हर शय गिराँ
ये बनाते हैं शकर बढ़ती हैं जिस से तल्ख़ियाँ
ख़ून की नलयों में कोलेस्ट्रोल बढ़ जाए अगर
''फूल की पत्ती से कट सकता है हीरे का जिगर''
ख़ून में इन के शकर है शुक्र करते हैं मगर
ये दुआ देते हैं 'इनसुलिन' को शाम ओ सहर
'कार्बोहाइडरेट' आ जाते हैं जिस शय में नज़र
खाने पीने में किया करते हैं ये उस से हज़र
ये जो मीठे ख़ून वाले हैं इन्हें मालूम है
''पेंक्रियाटिक जूस'' में से इन के कुछ मादूम है
ये नमक-ख़्वारान-ए-मिल्लत जब कहीं पीते हैं चाय
''आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए''
डालते हैं ये ''स्वीटिक्स'' इस में चीनी की बजाए
जिस को अपनी जान पियारी हो शकर कस तरह खाए
ये हैं वो फ़रहाद जो शीरीं से अपनी दूर हैं
है ज़्याबतीस वो बढ़िया जिस से ये मजबूर हैं
ये जो बच्चे हैं ज़्याबतीस के ग़म में मुब्तला
या इलाही इन की गाड़ी उमर की ऐसे चला
इन के क़ाबू आ के दब जाए मरज़ की ये बला
बच रहेगा एहतियातों में अगर रह कर पला
शर्त ये है ज़िंदगी में नज़्म हो और इंज़िबात
एहतियात और एहतियात और एहतियात और एहतियात
हो ज़्याबतीस जिसे उस की दवा परहेज़ है
है रफ़ीक़-ए-ज़िंदगी ये दुख जो दर्द-आमेज़ है
इस का फिर विर्से में मिलना भी तअज्जुब-ख़ेज़ है
ख़ानदानी क़िस्म का दुख है हज़र-अंगेज़ है
वर्ना मीठा ख़ूँ अगर रग में रवाँ हो जाएगा
''दोस्ती नादाँ की है, जी का ज़ियाँ हो जाएगा''
- पुस्तक : Teer-e-Neem Kash (पृष्ठ 148)
- रचनाकार : Sayed Mohammad Jafri
- प्रकाशन : Sang-e-Meel Publications, Lahore (P.k.) (2007)
- संस्करण : 2007
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