हफ़ीज़ मेरठी
पुस्तकें 9
चित्र शायरी 2
आबाद रहेंगे वीराने शादाब रहेंगी ज़ंजीरें जब तक दीवाने ज़िंदा हैं फूलेंगी फलेंगी ज़ंजीरें आज़ादी का दरवाज़ा भी ख़ुद ही खोलेंगी ज़ंजीरें टुकड़े टुकड़े हो जाएँगी जब हद से बढ़ेंगी ज़ंजीरें जब सब के लब सिल जाएँगे हाथों से क़लम छिन जाएँगे बातिल से लोहा लेने का एलान करेंगी ज़ंजीरें अंधों बहरों की नगरी में यूँ कौन तवज्जोह करता है माहौल सुनेगा देखेगा जिस वक़्त बजेंगी ज़ंजीरें जो ज़ंजीरों से बाहर हैं आज़ाद उन्हें भी मत समझो जब हाथ कटेंगे ज़ालिम के उस वक़्त कटेंगी ज़ंजीरें