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जाँ निसार अख़्तर

1914 - 1976 | मुंबई, भारत

महत्वपूर्ण प्रगतिशील शायर और फ़िल्म गीतकार। फ़िल्म गीतकार जावेद अख़्तर के पिता

महत्वपूर्ण प्रगतिशील शायर और फ़िल्म गीतकार। फ़िल्म गीतकार जावेद अख़्तर के पिता

जाँ निसार अख़्तर के वीडियो

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
जब लगें ज़ख़्म तो क़ातिल को दुआ दी जाए

जाँ निसार अख़्तर

ज़िंदगी ये तो नहीं तुझ को सँवारा ही न हो

जाँ निसार अख़्तर

तुलू-ए-सुब्ह है नज़रें उठा के देख ज़रा

जाँ निसार अख़्तर

हम ने काटी हैं तिरी याद में रातें अक्सर

जाँ निसार अख़्तर

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सुब्ह के दर्द को रातों की जलन को भूलें

सुब्ह के दर्द को रातों की जलन को भूलें बेगम अख़्तर

अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए

अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए अज्ञात

अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए

अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए नोमान शौक़

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो उस्ताद सलामत अली ख़ान

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो भारती विश्वनाथन

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो अज्ञात

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो अज्ञात

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो प्रित डिलन

ऐ दर्द-ए-इश्क़ तुझ से मुकरने लगा हूँ मैं

ऐ दर्द-ए-इश्क़ तुझ से मुकरने लगा हूँ मैं अज्ञात

ज़ुल्फ़ें सीना नाफ़ कमर

ज़ुल्फ़ें सीना नाफ़ कमर अज्ञात

तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है

तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है अज्ञात

लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से

लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से नोमान शौक़

सुब्ह के दर्द को रातों की जलन को भूलें

सुब्ह के दर्द को रातों की जलन को भूलें बेगम अख़्तर

हम ने काटी हैं तिरी याद में रातें अक्सर

हम ने काटी हैं तिरी याद में रातें अक्सर अज्ञात

हम से भागा न करो दूर ग़ज़ालों की तरह

हम से भागा न करो दूर ग़ज़ालों की तरह ग़ुलाम अब्बास

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो भूपिंदर सिंह

शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

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