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फ़िल्मी गीत10
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल 53
अशआर 44
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
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ऐसे हँस हँस के न देखा करो सब की जानिब
लोग ऐसी ही अदाओं पे फ़िदा होते हैं
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कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा
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देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख
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लोरी 1
गीत 6
फ़िल्मी गीत 10
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चित्र शायरी 14
हम हैं राही प्यार के हम से कुछ न बोलिए जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए दर्द भी हमें क़ुबूल चैन भी हमें क़ुबूल हम ने हर तरह के फूल हार में पिरो लिए धूप थी नसीब में धूप में लिया है दम चाँदनी मिली तो हम चाँदनी में सो लिए दिल का आसरा लिए हम तो बस यूँही जिए इक क़दम पे हँस लिए इक क़दम पे रो लिए राह में पड़े हैं हम कब से आप की क़सम देखिए तो कम से कम बोलिए न बोलिए
वीडियो 28
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