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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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निवेश साहू

1994 | दतिया, भारत

नई नस्ल के शायरों में शामिल, शायरी में रिवायत और नएपन के साथ मोहब्बत, दुख और अंदरूनी कशमकश का एक सादा और ख़ूबसूरत ज़बान में इज़हार

नई नस्ल के शायरों में शामिल, शायरी में रिवायत और नएपन के साथ मोहब्बत, दुख और अंदरूनी कशमकश का एक सादा और ख़ूबसूरत ज़बान में इज़हार

निवेश साहू

ग़ज़ल 33

नज़्म 6

अशआर 15

रोने लगे तो कौन हमें चुप कराएगा

सो इस की एहतियात है हम रो नहीं रहे

होश में आते ही हो जाते हैं चुप

और बे-होशी में चिल्लाते हैं हम

अगर होता तो ख़ुद को फिर बनाता

मगर अफ़्सोस कूज़ा-गर नहीं हूँ

अपने आँगन में परिंदे देख कर

जिस्म की टहनी से उड़ जाते हैं हम

तुम को अफ़सोस तुम्हें ठीक बनाया गया

और इक हम कि अभी चाक पे रक्खे गए

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