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सैय्यद मोहम्मद मीर असर

1735 - 1795 | दिल्ली, भारत

प्रमुख क्लासिकी शायर, मीर दर्द के छोटे भाई।

प्रमुख क्लासिकी शायर, मीर दर्द के छोटे भाई।

सैय्यद मोहम्मद मीर असर के शेर

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लिया है दिल ही फ़क़त और जान बाक़ी है

अभी तो काम तुम्हें मेहरबान बाक़ी है

यूँ ख़ुदा की ख़ुदाई बर-हक़ है

पर 'असर' की हमें तो आस नहीं

तू कहाँ मैं कहाँ कहते हैं

कि ये आपस में दोनों रहते हैं

तेरे आने का एहतिमाल रहा

मरते मरते भी ये ख़याल रहा

तू ही बेहतर है आइना हम से

हम तो इतने भी रू-शनास नहीं

रक़ीब देख सँभल कर के सामने आना

बरहना तेग़ हैं इक दस्त-ए-रोज़गार में हम

अपने नज़दीक दर्द-ए-दिल मैं कहा

तेरे नज़दीक क़िस्सा-ख़्वानी की

जिस घड़ी घूरते हो ग़ुस्सा से

निकले पड़ता है प्यार आँखों में

कहा जाए कि दुश्मन कहा जाए कि दोस्त

कुछ समझ में नहीं आता है 'असर' कौन है वो

अब तेरी दाद फ़रियाद किया करता हूँ

रात दिन चुपके पड़ा याद किया करता हूँ

जूँ अक्स कहाँ मिरा ठिकाना

तेरे जल्वे से जल्वा-गर हूँ

यार ग़ुस्सा तिरी बला खावे

काम निकले जो मुस्कुराने से

उस संग-दिल के दिल में तो नाले ने जा की

क्या फ़ाएदा जो और के जी में असर किया

आसूदगी कहाँ जो दिल-ए-ज़ार साथ है

मरने के ब'अद भी यही आज़ार साथ है

बेवफ़ा कुछ नहीं तेरी तक़्सीर

मुझ को मेरी वफ़ा ही रास नहीं

क्या कहूँ किस तरह से जीता हूँ

ग़म को खाता हूँ आँसू पीता हूँ

जन्नत है उस बग़ैर जहन्नम से भी ज़ुबूँ

दोज़ख़ बहिश्त हैगी अगर यार साथ है

किन ने कहा और से मिल तू

पर हम से भी कभू मिला कर

दर्द-ए-दिल छोड़ जाइए सो कहाँ

अपनी बाहर तो यहाँ गुज़र ही नहीं

यूँ आग में से भाग निकलना नज़र बचा

अपने तईं तो वज़्अ' भाई शरार की

कुछ लिक्खा पढ़ा हूँ वले हूँ मअ'नी-शनास

मुद्दआ तेरा समझता हूँ इबारात से मैं

काम तुझ से अभी तो साक़ी है

कि ज़रा हम को होश बाक़ी है

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